800 वर्षों से चली आ रही पंढरपुर दिंडी यात्रा, हर साल भगवान विट्ठल की महापूजा देखने पहुंचते है लाखों श्रद्धालु

800 वर्षों से चली आ रही पंढरपुर दिंडी यात्रा, हर साल भगवान विट्ठल की महापूजा देखने पहुंचते है लाखों श्रद्धालु
800 वर्षों से चली आ रही पंढरपुर दिंडी यात्रा, हर साल भगवान विट्ठल की महापूजा देखने पहुंचते है लाखों श्रद्धालु

महाराष्ट्र के पंढरपुर में स्थित यह मंदिर भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। यहां श्री कृष्ण को विट्ठल और विठोबा कहते हैं। यह हिन्दू मंदिर विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है। प्रत्येक वर्ष देवशयनी एकादशी के मौके पर पंढरपुर में लाखों लोग भगवान विट्ठल की महापूजा देखने के लिए पैदल यात्रा करके यहां आते हैं। पंढरपुर की यात्रा कार्तिक शुक्ल एकादशी को भी होती है। इस बार 10 जुलाई 2022 को देवशयनी एकादशी हैं।

आषाढ़ी एकादशी : आषाढ़ी एकादशी को देवशयनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन से देव 4 महोनों के लिए सो जाते हैं और वे फिर कार्तिक शुक्ल एकादशी को ही जागते है।   

पंढरपुर की दिंडी यात्रा : भगवान विट्ठल के दर्शन के लिए देश के कोने-कोने से पताका-डिंडी लेकर इस तीर्थस्थल पर यहाँ लोग पैदल चलकर पहुंचते हैं। इस यात्रा क्रम में कुछ लोग अलंडि में यहाँ जमा होते हैं और पुणे तथा जजूरी होते हुए पंढरपुर पहुंचते हैं। इनको ज्ञानदेव माउली की डिंडी के नाम से दिंडी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि ये यात्रायें पिछले 800 सालों से लगातार आयोजित की जाती रही हैं।

भगवान विट्ठलजी के दर्शन : महाराष्ट्र के पंढरपुर में स्थित यह मंदिर भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। यहां श्री कृष्ण को विठोबा भी कहते हैं। पंढरपुर का यह मंदिर दक्षिणी महाराष्ट्र राज्य में पश्चिमी भारत के भीमा नदी के तट पर शोलापुर नगर के पश्चिम में स्थित है। माना जाता है कि यहां स्थित पवित्र नदी चंद्रभागा में स्नान करने से भक्तों के सभी पापों को धोने की शक्ति होती है। भगवान विट्ठल को विट्ठोबा, पांडुरंग, पंढरिनाथ के नाम से भी जाना जाता है।

यहां विट्ठल जी के दर्शन के लिए लंबी कतार लगती है। सभी भक्त गणों को भगवान विठोबा की मूर्ति के पैर छूने की अनुमति है। विट्ठल जी मंदिर में महिलाओं और पिछड़े वर्गों के लोगों को पुजारी नियुक्त किया गया है। आषाढ़ी एकादशी पर महाराष्ट्र के कोने-कोने से वारकरी पालकियों और दिंडियों के साथ पंढरपुर में विट्ठल के दर्शन को पहुंचते हैं। दर्शन को उमड़ने वाले इस हुजूम की संख्या का अंदाजा लगा पाना मुश्किल है। पालकी के साथ एक मुख्य संत के मार्गदर्शन में समूह यानी दिंडी (कीर्तन/भजन मंडली) चलता है, जिसमें शामिल होते हैं वारकरी। एक दिंडी यानी 250-300 लोगों का परिवार, जो सालभर एक-दूसरे के संपर्क में रहता है।

दर्शन करने का समय : सुबह 06:00 बजे से 11:00 बजे तक, सुबह 11:15 बजे से शाम 04:30 बजे तक, शाम 05:00 बजे से रात 11:00 बजे तक।