एस्ट्रोलॉजी के अनुसार घर पर आए अतिथि को पानी पिलाना और भोजन कराना इतना जरुरी क्यों है?
घर में आए अतिथि यानी कि मेहमान। हमारे हिन्दू धर्म में ऐसा मेहमान या हम उसे आगुंतक भी कह सकते है जो कि बिना किसी भी सुचना के घर पर आए, उसे अतिथि कहा जाता है। जो बताकर आए वह भी स्वागत योग्य ही होता है। हमारे हिन्दू धर्म में अतिथि का शाब्दिक अर्थ होता है परिव्राजक, सन्यासी, भिक्षु, मुनि, साधू, संत और साधक भी कहा जाता है। अतिथि देवो भवः इसका मतलब हुआ कि अतिथि को देवता के समान माना जाता है। आज के लेख में हम आपको बताएगे कि अतिथि को अन्न या जल ग्रहण करना क्यों जरुरी है।
- यदि आपके घर मेहमान आया है तो और वह जल ग्रहण नहीं कर पाता है तो इससे आपको राहु दोष लगता है। इसलिए एस्ट्रोलॉजी कंसल्टेंसी के ऐसा माना जाता है अतिथि को कम से कम जल तो ग्रहण करना ही चाहिए।
- किसी भी अतिथि को यदि हम अन्न या स्वल्पाहर प्रदान करते है तो इससे हमे लाभ मिलता है।
- अगर हम गृहस्थ जीवन में रहते है तो हमारे लिए जरुरी है कि हम पांच यानी पंच यज्ञों का पालन जरूर करे। वह पांच यज्ञ है: 1. ब्रह्मयज्ञ, 2. देवयज्ञ, पितृयज्ञ, 4. वैश्वदेव यज्ञ, 5. अतिथि यज्ञ। इन सभी पंच यज्ञों में एक है अतिथि यज्ञ जो कि हम सबका कर्तव्य है पूरा करना।
- अगर हम पुराणों की बात करे तो अतिथि यज्ञ को जीव ऋण भी कहा जाता है। इसका मतलब है कि अतिथि, याचक तथा चीटियां पशु पक्षियों का भी उचित सेवा सत्कार करने से जहां अतिथि यज्ञ पूरा होता है वही जीव ऋण भी उत्तर जाता है।
- तिथि का यहां पर तात्पर्य है कि मेहमानों की सेवा करना और उन्हें जल अन्न दान देना। अपंग, महिला, विद्यार्थी, संन्यासी, चिकित्सक और धर्म के रक्षकों की सेवा-सहायता करना ही अतिथि यज्ञ है। इससे संन्यास आश्रम पुष्ट होता है। यही पुण्य है। यही सामाजिक कर्त्तव्य है।
- इस बात से तो सब वाकिफ है कि प्रकृति का नियम है कि जितना आप उसे देते है उससे दोगुना वह आपको लौटा देती है। अगर आप अन्न या धन को पकड़ के रखेंगे तो यह हाथ से छूटता जाएगा। दानों में सबसे अच्छा और बड़ा दान अन्न दान को माना जाता है। दान को पंच यज्ञ में से एक वैशदेवयज्ञ भी कहा जाता है।
- गाय, कुत्ते, कौवे, चिंटी और पक्षी के हिस्से का भोजन निकालना जरूरी है, क्योंकि हिन्दू संस्कृति में इन्हे भी हमारे घर के अतिथि माना जाता हैं।
- विश्व प्रसिद्ध ज्योतिष के अनुसार ऐसा माना जाता है कि घर पर आए हुए अतिथि को भूखा, प्यासा लौटा देना पाप माना जाता है। इसे वह दौर था जबकि स्वयं भगवान या देवता किसी ब्राह्मण, भिक्षु, संन्यासी आदि का वेष धारण करके आ जाते थे। प्राचीन काल में 'ब्रह्म ज्ञान' प्राप्त करने के लिए लोग ब्राह्मण बनकर जंगल में रहने चले जाते थे। आश्रम के मुनि उन्हें भिक्षा मांगने ग्राम या नगर में भेजते थे। उसी भिक्षा से वे गुजारा करते थे।
- यदि आपके घर पर कोई मेहमान का स्वागत सत्कार, अन्न या जल ग्रहण कराने का नियम चला आता है तो इससे आपका समाज में मान सम्मान और प्रतिष्ठा बढ़ती है।
- अतिथियों की सेवा से देवी और देवता प्रसन्न होकर जातक को आशीर्वाद देते हैं।
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