कैसे श्रीकृष्ण की भक्ति में मीरा ने खुदको किया था समर्पित? जानिए रोचक जानकारी
मीरा बाई को कौन नहीं जानता। उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की परम भक्त माना जाता था। मीराबाई का जन्म सन 1498 में हुआ था। मीराबाई की भक्ति और प्रेम की मिसाल आज भी दी जाती है। मीरा ने अपना पूरा जीवन श्रीकृष्ण दर्शन के लिए ही समर्पित कर दिया था। ऐसा माना जाता है कि बचपन से ही मीरा कृष्ण भक्ति में लीन हो गई थी। धार्मिक ग्रंथों में ऐसा उल्लेख दिया गया है कि जब मीरा 4 साल की थी तो वह अपनी माता के साथ में किसी विवाह समारोह में गई थी। उस समय मीराबाई ने बहुत ही मासूमियत से अपनी माता से पूछा कि माँ मेरा वर कौन होगा तो उनकी माँ ने श्रीकृष्ण की मूर्ती की तरफ इशारा करके कहा कि श्री कृष्ण तुम्हारे वर होंगे। ऐसा माना जाता है उसी दिन से मीरा बाई भगवान श्रीकृष्ण को अपना वर मानकर उनकी भक्ति और प्रेम में लीन हो गई थी।
जब मीराबाई बड़ी हुई तो उन्हें इस बात का पूर्ण विश्वास था कि उनका विवाह श्रीकृष्ण से ही होगा एवं श्रीकृष्ण उनसे शादी करने के लिए अवश्य आएगे। लेकिन उनकी शादी राणा सांगा से हो गई थी। मीराबाई इस शादी से खुश नहीं थी। ऐसा माना जाता है कि उनके परिवारवालों के जोर देने पर मीराबाई ने राणा सांगा से शादी कर ली थी। पौराणिक मान्यताओं के हिसाब से ऐसा माना जाता है कि शादी के बाद में भी उनकी कृष्ण भक्ति में कोई भी कमी नहीं आई थी। अपने विवाह के पश्चात भी वह रोजाना घर का पूरा काम करने के बाद में मंदिर में जाकर श्रीकृष्ण की पूजा करती थी एवं श्रीकृष्ण के भजन गाकर नृत्य किया करती थी।
ऐसा कई ग्रंथों में वर्णित है कि श्रीकृष्ण के प्रति मीरा का प्रेम और भक्ति उनके ससुरवालों को बिलकुल भी पसंद नहीं था। मीराबाई की सास चाहती थी कि वो मां दुर्गा की आराधना करे लेकिन मीरा ने उनसे कह दिया था कि मैं पहले ही अपना जीवन कृष्णा के नाम कर चुकी हु। मीराबाई को मारने के लिए उनके ससुरालवालों ने एक बार प्रसाद में जहर मिला दिया था। मीराबाई ने यह बात जानते हुए कि प्रसाद में जहर है उन्होंने वह खा लिया था। मीराबाई के ससुरालवालों ने ऐसी कई नाकाम कोशिशें की थी लेकिन हर बार भगवानकृष्ण ने उनकी रक्षा की थी।
कब हुए थे मीरा को श्रीकृष्ण के दर्शन?
ऐसा माना जाता है कि एक दिन मीरा पर क्रोधित होकर उनके पति ने कहा कि जाकर कही डूब जाओ एवं कभी अपना चेहरा मत दिखाना। मीरा ने उसके बाद अपने पति की बातों का पालन किया और वह श्रीकृष्ण का ध्यान करते हुए नदी की ओर बढ़ने लगी। जैसे ही मीरा बाई नदी की ओर बढ़ने लगती है तो ऐसा माना जाता है कि किसी ने उनका हाथ पीछे से थाम लिया। मीरा ने मुड़कर देखा तो कृष्ण को पाया, कृष्ण को अपने पास देखकर मीरा को यकीन नहीं हुआ और वो बहोश हो गयीं। यह देखकर कृष्ण मुस्कराए और उन्होंने मीरा के कानों में कहा कि, तुम्हारा जीवन नश्वर रिश्तेदारों से मुक्त हो गया है तुम मेरी हो और हमेशा मेरी रहोगी। इसके बाद मीरा वृंदावन चली गयीं। लेकिन कुछ वक्त बाद वो मेवाड़ वापस लौट आयीं और उन्होंने अपने पति से विनती की कि उन्हें कृष्ण मंदिर में रहने की इजाज़त दी जाए।
श्रीकृष्ण की मूर्ती में समा गई थी मीरा
एस्ट्रोलॉजी कंसल्टेंसी के अनुसार ऐसा माना जाता है जिस मंदिर में मीरा भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करती थी। वही मीरा ने एक दिन भगवान श्रीकृष्ण की पुकार सुनी थी। इसके बाद में माना जाता है कि जिस मंदिर में मीरा थीं उसके कपाट बंद हो जाते हैं और जब कपाट खुलते हैं तो मीरा की साड़ी कृष्ण भगवान की मूर्ति पर लिपटी होती है लेकिन मीरा वहां नहीं होती। स्थानिय लोग मानते हैं कि मीरा उस दिन कृष्ण की मूर्ति में समा गई थीं। मीराबाई की कृष्ण भक्ति की आज भी लोग मिसाल देते हैं और जब भी कृष्ण के भक्तों की बात की जाती है तो उसमें सबसे पहला स्थान मीरा को दिया जाता है।
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